पाँच हजार साल पुराना कुंड जिसमें बहती है गंगा - Gangu Kund Udaipur

Gangu Kund Udaipur, इसमें उदयपुर के आयड़ में पाँच हजार साल पुराने आयड सभ्यता के इतिहास को समेटे हुए प्राचीन गंगू कुंड के बारे में जानकारी दी गई है।

Gangu Kund Udaipur

उदयपुर का नाम पर्यटक स्थल के साथ-साथ सिन्धु घाटी सभ्यता के समकालीन पाँच हजार वर्ष पुरानी आयड़ सभ्यता की वजह से भी जाना जाता है।

ताम्र पाषाण कालीन सभ्यता का केंद्र यह सभ्यता आयड़ नदी के किनारे पर विकसित होकर फली फूली।

प्राचीन समय में आयड़ (Ayad) या आहर (Ahar) को अघटपुर (Aghatpur), आटपुर (Aitpoor), आनंदपुर (Anandpura), गंगोद्भव तीर्थ (Gangodbhav Tirth) जैसे कई नामों से जाना जाता था।

11वीं सदी में आयड़ या आहड़ गुहिलों का एक जनपद था जिसने 13वीं शताब्दी में व्यापारिक मंडी की पहचान बना ली। यहाँ के शासकों में हारावल अल्लट, शक्तिकुमार से लेकर जैत्रसिंह आदि प्रमुख है। प्रसिद्ध कल्प सूत्र ग्रंथ का चित्रण भी यहीं हुआ।

यहाँ पर कई जलस्रोत बने जिनमें प्रमुख प्राकृतिक जलस्रोत को गंगोद्भव कुंड के रूप में जाना जाता है। यहाँ पर सूर्य, विष्णु, शिव और जैन मंदिरों के साथ कई देववापियों का निर्माण हुआ। देवी देवताओं की अनेक मूर्तियाँ यहाँ पर बनीं और स्थापित हुईं।

यहाँ पर गुहिल काल की कई मूर्तियाँ मिली हैं जिनमें कई तो 1961 ईस्वी में गंगोद्भव कुंड की सफाई और जीर्णोद्धार के दौरान कुंड में से निकली है। इनमें से अधिकांश को यहीं दीवार में जड़ दिया गया है।

इन मूर्तियों में मयूर पर सवार कार्तिकेय (षडानन) के तीन मुख वाली मूर्ति, हंस पर सवार ब्रह्मा सावित्री की मूर्ति, कल्याण सुंदर मूर्ति के साथ सहस्र लिंग, मार्तंड देव आदि के कई विग्रह शामिल हैं।

इसी आयड़ नदी के पास आयड सभ्यता के मुख्य टीले के पास गंगोद्भव कुंड परिसर स्थित है। उदयपुर रेलवे स्टेशन से यहाँ की दूरी लगभग पाँच किलोमीटर है।

गंगोद्भव कुंड के क्षेत्र को गंगू कुंड के नाम से अधिक जाना जाता है। यह कुंड एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में विख्यात है और ऐसी मान्यता है कि इस कुंड से पवित्र गंगा नदी की एक धारा का उद्भव होता है।

इसी वजह से गंगू कुंड के जल को गंगा नदी के जल के समान पवित्र माना जाता है और इस जल को कई धार्मिक और पवित्र कार्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

शिव महोत्सव समिति द्वारा प्रतिवर्ष गंगू कुंड से उबेश्वर (उभयेश्वर) महादेव के मंदिर तक 21 किलोमीटर लम्बी कावड यात्रा निकाली जाती है।

गंगू कुंड परिसर में मेवाड़ राजपरिवार की छतरियाँ बनी हुई है जिसमें महाराणा अमर सिंह एवं उनके बाद के सभी महाराणाओं की छतरियाँ शामिल है।

यह स्थान मेवाड़ के राजपरिवार के सदस्यों के दाह संस्कार की स्थली रहा है। महाराणा प्रताप के पश्चात उदयपुर के महाराणाओं का अंत्येष्टि संस्कार इसी स्थान पर हुआ है।


पहले गंगू कुंड एवं राजपरिवार की छतरियाँ एक ही परिसर में बनी हुई थी लेकिन अब इन्हें दीवार बनाकर अलग कर दिया गया है।

राजपरिवार के सदस्यों की छतरियों वाले स्थल को महासतिया के नाम से जाना जाता है और इसमें जाने के लिए अब अलग से द्वार बना हुआ है।

अभी भी गंगू कुंड परिसर में कई छतरियाँ मौजूद है जिनमें मेवाड़ के सामंतों एवं उनकी पत्नियों की छतरियाँ प्रमुख है।

गंगू कुंड आयताकार आकृति में बना हुआ काफी बड़ा कुंड है जिसमें पर्याप्त मात्रा में पानी भरा रहता है। कुंड में नीचे उतरने के लिए तीन तरफ सीढ़ियाँ बनी हुई है।

गंगोद्भव कुंड के बीच में एक ऊँचा प्लेटफार्म है जिसे राजा गंधर्वसेन की छतरी के नाम से जाना जाता है।

राजा गंधर्वसेन को उज्जैन के राजा विक्रमादित्य का भाई माना जाता है। इस छतरी में शिवलिंग स्थापित है। कुंड में चारों तरफ प्रचुर मात्रा में मछलियाँ तैरती दिख जाती है।

गंगू कुंड के निकट ही दक्षिण दिशा में निचली भूमि पर एक परकोटे युक्त परिसर में शिव मंदिर समूह बना हुआ है। इस परिसर में गणेशजी, हनुमानजी के मंदिरों के साथ-साथ कई छोटे मंदिर बने हुए हैं जिनमें कुछ में शिवलिंग मौजूद है।

मुख्य शिव मंदिर को 950 वीं शताब्दी में मेवाड़ के गुहिल वंशी रावल अल्लट (Allat) ने बनवाया था। यह शिव मंदिर शिखर, गर्भगृह एवं स्तम्भयुक्त सभामंडप से युक्त था।

वर्ष 2019 में मरम्मत के अभाव में मंदिर का शिखर एवं गर्भगृह का ऊपरी हिस्सा ढह गया। सभामंडप सुरक्षित है जिसमे पिछले एक हजार वर्षों से चतुर्मुखी शिव लिंग विराजित हैं।

मंदिर के गर्भगृह की तीनों दिशाओं में तीन प्रधान ताकों में तीन मूर्तियाँ स्थापित थी जिनमें पूर्व में हरिहर, उत्तर में चामुण्डा और दक्षिण में लकुलिश शामिल है। यह मंदिर दसवीं शताब्दी की शिल्प कला का एक बेहतरीन उदाहरण है।

मंदिर के निकट ही दोनों तरफ दो प्राचीन कुंड बने हुए हैं जो गंगू कुंड से काफी छोटे हैं। मंदिर के सामने की दीवार की ताक में एक और शिवलिंग विराजित है एवं दीवार में कई जगह कलात्मक मूर्तियाँ लगी हुई।

मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण एवं जीर्णोद्धार होने से इसमें कई परिवर्तन आसानी से दिखाई देते हैं जैसे इसकी पीठ का दब जाना, सभामंडप के स्तम्भों एवं बैठकियों के आकारों में विविधता आदि।

पिपली शिलालेख से पता चलता है कि दसवीं शताब्दी में गुहिल शासक रावल अल्लट को मालवा के शासक मुंजा राजा की वजह से चित्तौड़गढ़ छोड़ना पड़ा तब उन्होंने प्राचीन आयड़ में अपनी नई राजधानी स्थापित की।

अल्लट ने यहाँ पर इस शिव मंदिर के साथ-साथ अन्य कई मंदिरों का निर्माण करवाया था। साथ ही रावल अल्लट ने प्रतिहार वंश के राजा देवपाल को पराजित कर मेवाड़ को प्रतिहारों के समकक्ष खड़ा कर दिया।

भृर्तभट्ट अभिलेख से यह पता चलता है कि तत्कालीन गुहिल वंशी शासक एवं उनके सामंतों में धार्मिक सहनशीलता, उदारता एवं सहिष्णुता की भावना थी जिसका अनुमान यहाँ की संयुक्त प्रतिमाओं को देख कर बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है।

गंगू कुंड परिसर के पास में ही मीरा मंदिर मौजूद है जो एक ऊँची जगती यानी ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है जिस पर जटिल नक्काशी युक्त मूर्तियाँ बनी हुई हैं। यह मंदिर भी गंगू कुंड के शिव मंदिर समूह के समकालीन है।

गंगू कुंड परिसर ऐतिहासिक होने के साथ-साथ बहुत आकर्षक पर्यटक स्थल है। यहाँ पर कई फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है जिनमें जाह्नवी कपूर द्वारा अभिनीत धड़क (Dhadak) प्रमुख है।

जब भी आपको उदयपुर घूमने का मौका मिले तो आपको गंगू कुंड परिसर में जाकर अपनी विरासत को करीब से अवश्य देखना चाहिए।

गंगू कुंड की मैप लोकेशन - Map Location of Gangu Kund



गंगू कुंड उदयपुर का वीडियो - Video of Gangu Kund Udaipur



डिस्क्लेमर (Disclaimer)

इस लेख में शैक्षिक उद्देश्य के लिए दी गई जानकारी विभिन्न ऑनलाइन एवं ऑफलाइन स्रोतों से ली गई है जिनकी सटीकता एवं विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। आलेख की जानकारी को पाठक महज सूचना के तहत ही लें क्योंकि इसे आपको केवल जागरूक करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।
Ramesh Sharma

नमस्ते! मेरा नाम रमेश शर्मा है। मैं एक रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट हूँ और मेरी शैक्षिक योग्यता में M Pharm (Pharmaceutics), MSc (Computer Science), MA (History), PGDCA और CHMS शामिल हैं। मुझे भारत की ऐतिहासिक धरोहरों और धार्मिक स्थलों को करीब से देखना, उनके पीछे छिपी कहानियों को जानना और प्रकृति की गोद में समय बिताना बेहद पसंद है। चाहे वह किला हो, महल, मंदिर, बावड़ी, छतरी, नदी, झरना, पहाड़ या झील, हर जगह मेरे लिए इतिहास और आस्था का अनमोल संगम है। इतिहास का विद्यार्थी होने की वजह से प्राचीन धरोहरों, स्थानीय संस्कृति और इतिहास के रहस्यों में मेरी गहरी रुचि है। मुझे खास आनंद तब आता है जब मैं कलियुग के देवता बाबा खाटू श्याम और उनकी पावन नगरी खाटू धाम से जुड़ी ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारियाँ लोगों तक पहुँचा पाता हूँ। इसके साथ मुझे अलग-अलग एरिया के लोगों से मिलकर उनके जीवन, रहन-सहन, खान-पान, कला और संस्कृति आदि के बारे में जानना भी अच्छा लगता है। साथ ही मैं कई विषयों के ऊपर कविताएँ भी लिखने का शौकीन हूँ। एक फार्मासिस्ट होने के नाते मुझे रोग, दवाइयाँ, जीवनशैली और हेल्थकेयर से संबंधित विषयों की भी अच्छी जानकारी है। अपनी शिक्षा और रुचियों से अर्जित ज्ञान को मैं ब्लॉग आर्टिकल्स और वीडियो के माध्यम से आप सभी तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। 📩 किसी भी जानकारी या संपर्क के लिए आप मुझे यहाँ लिख

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